Monday, February 22, 2010

उस पार की जमीन

॥ उस पार की जमीन॥

बच्चे के पास
नहीं है कोई जेट विमान
कोई रॉकेट
या हवाई सर्वेक्षण करता
कोई हैलिकौप्टर।

उसके पास है
प्यार की डोरी में बंधी
एक पतंग
उड़ते-उड़ते पहुंच गई जो
सरहद पार के आसमान में
बांट रही
एक अदद मुस्कान।

कोई शक की नजरों
नहीं देखेगा उसे
सरहद पार।
न ही दागी जाएगी
कोई मिसाइल
उसे गिराने को।

कोई बच्चे जैसा बच्चा
सरहद पार का
निहारेगा उसे
तालियां बजाएगा
खिलखिलाएगा।

कटकर जाएगी जब
तो वह उमंगों भर जाएगा
लूटने को दोनों हाथ फैलाएगा।
और इस प्रकार
भर जाएगी मुस्कान से
सरसब्ज हो जाएगी प्यार से
उस पार की जमीन।

Sunday, January 31, 2010

बेटी जब पंख फैलाती है

 ॥ बेटी जब पंख फैलाती है॥

जवान होता बेटा
जब उडारी भरने लगता है
दूर-दूर तक
तो मां-बाप के फख्र का
पार नहीं रहता।
और बेटी
जब पंख फैलाती है
तो मां-बाप के फिक्र का
पार नहीं रहता।

॥ त्रिभुज के बीच॥

विधायक की ड्योढ़ी के
ठीक सामने
इस ठिठुरती रात में
खुले आसमान तले
गाय, गोधे, और कुत्ते के
त्रिभुज के बीच
चिथड़ों में अपना बदन समेटे
पड़ी है एक मानव संतान।
यह भी तो
किसी मां की बेटी है।

॥ लड़की पतंग लूटना चाहती है॥

आसमान में
उड़ती पतंगों को
निहार रही है
छत पर खड़ी
गुडिय़ा-सी बिटिया।

दिख गया उसे
आसमान चीरता
एक हवाई जहाज।
बोली-
पापा,
हवाई जहाज ला दो ना!

विस्फारित नेत्रों
पढ़ा पिता ने
बेटी का चेहरा
और मुस्कराए।

बेटी ने गड़ा दीं आंखें
पिता की आंखों में,
ला दो ना पापा,
हम हवाई जहाज पर चढ़
पतंग लूटेंगे।

सचमुच,
लड़की पतंग लूटना चाहती है
वह भी
दौडऩा चाहती है
गलियों में उन्मुक्त।

अब मर्जी तुम्हारी।

॥ बेटी ने कलम उठाई तो...॥

उम्रभर लिखता रहा वह
प्रेमपत्र व प्रेम-कविताएं,

बेटी ने कलम उठाई तो
घर में बवाल हो गया।